हरिद्वार: हरि तक पहुँचने का द्वार है कुंभ नगरी हरिद्वार
यह स्थान उन चार स्थलों में से एक है जहाँ अमृत की बूंदें गिरी थीं, जिससे हरिद्वार को कुम्भ मेले का आयोजन स्थल बनाया गया।
वायु मार्ग से निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा (देहरादून) है, जो हरिद्वार से लगभग 35 किमी दूर है।
हरिद्वार, उत्तराखंड राज्य का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक शहर है। इसे 'हर की पौड़ी' के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर गंगा नदी के तट पर बसा हुआ है और हिंदू धर्म के सात पवित्रतम नगरों (सप्तपुरी) में से एक है।
हरिद्वार का उल्लेख प्राचीन धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। इसे 'गंगाद्वार' और 'मायापुरी' के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान उन चार स्थलों में से एक है जहाँ अमृत की बूंदें गिरी थीं, जिससे हरिद्वार को कुम्भ मेले का आयोजन स्थल बनाया गया। मध्यकाल में हरिद्वार कई राजवंशों के अधीन रहा, जिनमें मौर्य, कुषाण और गुप्त राजवंश प्रमुख थे। मुस्लिम शासन के दौरान भी इस स्थान की धार्मिक महत्ता बनी रही। उसके बाद अंग्रेजी शासन के दौरान हरिद्वार को रेलवे नेटवर्क से जोड़ा गया, जिससे तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि हुई।1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद यह स्थान उत्तर प्रदेश का हिस्सा बना और 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ।
हरिद्वार का पौराणिक इतिहास हिंदू धर्म की गहराइयों में बसा हुआ है और यह स्थान कई धार्मिक कथाओं और मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। जैसे-
गंगा अवतरण की कथा
हरिद्वार का पौराणिक इतिहास गंगा नदी के अवतरण से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म के अनुसार, गंगा नदी स्वर्ग से पृथ्वी पर राजा भागीरथ की तपस्या के फलस्वरूप अवतरित हुई। राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए गंगा को धरती पर लाने की प्रार्थना की थी। उनकी कठोर तपस्या के बाद, भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और फिर धीरे-धीरे उसे हरिद्वार में मुक्त किया। इस घटना का संबंध हर की पौड़ी घाट से है, जो हरिद्वार में स्थित है और अत्यधिक पवित्र माना जाता है।
समुद्र मंथन और अमृत कथा
हरिद्वार का उल्लेख समुद्र मंथन की कथा में भी मिलता है। देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान, अमृत कलश की प्राप्ति हुई। अमृत कलश की प्राप्ति के बाद, इसे सुरक्षित रखने के लिए देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इसलिए, हरिद्वार को कुम्भ मेले का आयोजन स्थल माना जाता है, जहां हर 6 वर्ष बाद एक बार अर्धकुंभ और हर 12 वर्ष बाद एक बार महाकुंभका मेला आयोजित होता है।
सप्तऋषियों की कथा
हरिद्वार का संबंध सप्तऋषियों की कथा से भी है। ऐसा माना जाता है कि सप्तऋषियों (सात ऋषि) ने गंगा नदी के किनारे तपस्या की थी। गंगा नदी उनकी तपस्या में बाधा उत्पन्न नहीं करे, इसलिए उसने सात धाराओं में विभाजित होकर बहना शुरू किया, जिससे सप्तऋषियों की तपस्या में कोई विघ्न नहीं पड़ा।
दक्ष प्रजापति और सती की कथा
हरिद्वार का एक अन्य महत्वपूर्ण पौराणिक संदर्भ दक्ष प्रजापति और सती की कथा से जुड़ा हुआ है। दक्ष प्रजापति ने यहाँ एक महान यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। इससे नाराज होकर सती ने यज्ञ स्थल पर ही आत्मदाह कर लिया। इस घटना के बाद, भगवान शिव ने दक्ष प्रजापति का सर काट दिया, लेकिन बाद में उसे पुनर्जीवित कर दिया। यह कथा हरिद्वार के दक्षेश्वर महादेव मंदिर से संबंधित है।
माया देवी की कथा
हरिद्वार का नाम एक अन्य पौराणिक कथा से भी जुड़ा हुआ है जिसमें माया देवी की महत्ता बताई गई है। माना जाता है कि माया देवी ने यहाँ पर असुरों का संहार किया था और इसलिए यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है।
हरिद्वार का पौराणिक इतिहास और महत्व इसे हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल बनाता है। यहाँ के धार्मिक स्थल इस शहर को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं।
हरिद्वार में घूमने योग्य स्थल:
1. हर की पौड़ी:हरिद्वार का सबसे प्रमुख घाट है, जहाँ गंगा आरती का आयोजन होता है। यह धार्मिक गतिविधियों और स्नान के लिए मुख्य केंद्र है।
2. मनसा देवी मंदिर:यह मंदिर शिवालिक पहाड़ियों पर स्थित है और मनसा देवी को समर्पित है। यहां पहुंचने के लिए रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है।
3. चंडी देवी मंदिर:यह मंदिर नील पर्वत पर स्थित है और चंडी देवी को समर्पित है। यहां भी रोपवे की सुविधा है।
4. माया देवी मंदिर:यह मंदिर माया देवी को समर्पित है और हरिद्वार के प्रमुख मंदिरों में से एक है।
5. भारत माता मंदिर:यह एक अनोखा मंदिर है जो भारत माता को समर्पित है। यह मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करता है।
6. पवित्र गंगा नदी:हरिद्वार में गंगा नदी का पवित्र जल विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और स्नान के लिए उपयोग किया जाता है।
कैसे पहुंचें हरिद्वार:
वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा (देहरादून) है, जो हरिद्वार से लगभग 35 किमी दूर है।
रेल मार्ग: हरिद्वार रेलवे स्टेशन प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग: हरिद्वार दिल्ली, देहरादून और अन्य प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
हरिद्वार में विभिन्न प्रकार के होटल, धर्मशाला और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं, जो बजट और सुविधा के अनुसार ठहरने के लिए विभिन्न विकल्प प्रदान करते हैं।
हरिद्वार घूमने का सर्वश्रेष्ठ समय:
हरिद्वार यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे उत्तम माना जाता है। इस समय मौसम सुहावना और घूमने के लिए अनुकूल रहता है। इसके अलावा बारिश के मौसम में भी यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता आकर्षक होती है। परंतु जून से सितंबर तक भारी वर्ष के कारण यात्रा में बाधा आ सकती है। जबकि अप्रैल और मई में यहाँ बहुत गर्मी रहती है।
इस प्रकार हरिद्वार एक पवित्र और ऐतिहासिक स्थल है जो धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। यहाँ की यात्रा श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक अनुभव और सांस्कृतिक धरोहर का साक्षात्कार करने का अवसर प्रदान करती है।